Monday, December 31, 2012

नया साल बधाई संदेश

नया साल आपके लिए नई खुशियाँ ,नया उमंग,नई राहें,नई उम्मीद,नई किरण,नई और अच्छी सोच,नये अच्छे विचार लाये।
यही मेरी भगवान से प्रार्थना है।
आप सभी को मेरी तरफ से नए साल की हार्दिक शुभकामनायें।

Monday, December 24, 2012

जीवनी

  नेताजी सुभाष चंद्र बोस



नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में कटक के एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। बोस के पिता का नाम 'जानकीनाथ बोस' और माँ का नाम 'प्रभावती' था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वक़ील थे। प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 संतानें थी, जिसमें 6 बेटियाँ और 8 बेटे थे। सुभाष चंद्र उनकी नौवीं संतान और पाँचवें बेटे थे। अपने सभी भाइयों में से सुभाष को सबसे अधिक लगाव शरदचंद्र से था।
नेताजी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में हुई। तत्पश्चात् उनकी शिक्षा कलकत्ता के प्रेज़िडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई, और बाद में भारतीय प्रशासनिक सेवा (इण्डियन सिविल सर्विस) की तैयारी के लिए उनके माता-पिता ने बोस को इंग्लैंड के केंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया। अँग्रेज़ी शासन काल में भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में जाना बहुत कठिन था किंतु उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया। 

1921 में भारत में बढ़ती राजनीतिक गतिविधियों का समाचार पाकर  बोस ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली और शीघ्र भारत लौट आए। सिविल सर्विस छोड़ने के बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए।  सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी के अहिंसा के विचारों से सहमत नहीं थे। वास्तव में महात्मा गांधी उदार दल का नेतृत्व करते थे, वहीं सुभाष चंद्र बोस जोशीले क्रांतिकारी दल के प्रिय थे। महात्मा गाँधी और सुभाष चंद्र बोस के विचार भिन्न-भिन्न थे लेकिन वे यह अच्छी तरह जानते थे कि महात्मा गाँधी और उनका मक़सद एक है, यानी देश की आज़ादी। सबसे पहले गाँधीजी को राष्ट्रपिता कह कर नेताजी ने ही संबोधित किया था। 

1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया। यह नीति गाँधीवादी आर्थिक विचारों के अनुकूल नहीं थी।  1939 में बोस पुन एक गाँधीवादी प्रतिद्वंदी को हराकर विजयी हुए।  गांधी ने इसे अपनी हार के रुप में लिया।  उनके अध्यक्ष चुने जाने पर गांधी जी ने कहा कि बोस की जीत मेरी हार है और ऐसा लगने लगा कि वह कांग्रेस वर्किंग कमिटी से त्यागपत्र दे देंगे।  गाँधी जी के विरोध के चलते इस ‘विद्रोही अध्यक्ष’ ने त्यागपत्र देने की आवश्यकता महसूस की।  गांधी के लगातार विरोध को देखते हुए उन्होंने स्वयं कांग्रेस छोड़ दी।

इस बीच दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया। बोस का मानना था कि अंग्रेजों के दुश्मनों से मिलकर आज़ादी हासिल की जा सकती है। उनके विचारों के देखते हुए उन्हें ब्रिटिश सरकार ने कोलकाता में नज़रबंद कर लिया लेकिन वह अपने भतीजे शिशिर कुमार बोस की सहायता से वहां से भाग निकले। वह अफगानिस्तान और सोवियत संघ होते हुए जर्मनी जा पहुंचे।

सक्रिय राजनीति में आने से पहले नेताजी ने पूरी दुनिया का भ्रमण किया। वह 1933 से 36 तक यूरोप में रहे। यूरोप में यह दौर था हिटलर के नाजीवाद और मुसोलिनी के फासीवाद का। नाजीवाद और फासीवाद का निशाना इंग्लैंड था, जिसने पहले विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी पर एकतरफा समझौते थोपे थे। वे उसका बदला इंग्लैंड से लेना चाहते थे। भारत पर भी अँग्रेज़ों का कब्जा था और इंग्लैंड के खिलाफ लड़ाई में नेताजी को हिटलर और मुसोलिनी में भविष्य का मित्र दिखाई पड़ रहा था। दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। उनका मानना था कि स्वतंत्रता हासिल करने के लिए राजनीतिक गतिविधियों के साथ-साथ कूटनीतिक और सैन्य सहयोग की भी जरूरत पड़ती है।
सुभाष चंद्र बोस ने 1937 में अपनी सेक्रेटरी और ऑस्ट्रियन युवती एमिली से शादी की। उन दोनों की एक अनीता नाम की एक बेटी भी हुई जो वर्तमान में जर्मनी में सपरिवार रहती हैं।

नेताजी हिटलर से मिले। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत और देश की आजादी के लिए कई काम किए। उन्होंने 1943 में जर्मनी छोड़ दिया। वहां से वह जापान पहुंचे। जापान से वह सिंगापुर पहुंचे। जहां उन्होंने कैप्टन मोहन सिंह द्वारा स्थापित आज़ाद हिंद फ़ौज की कमान अपने हाथों में ले ली। उस वक्त रास बिहारी बोस आज़ाद हिंद फ़ौज के नेता थे। उन्होंने आज़ाद हिंद फ़ौज का पुनर्गठन किया। महिलाओं के लिए रानी झांसी रेजिमेंट का भी गठन किया जिसकी लक्ष्मी सहगल कैप्टन बनी।

'नेताजी' के नाम से प्रसिद्ध सुभाष चन्द्र ने सशक्त क्रान्ति द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर, 1943 को 'आज़ाद हिन्द सरकार' की स्थापना की तथा 'आज़ाद हिन्द फ़ौज' का गठन किया इस संगठन के प्रतीक चिह्न पर एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था। नेताजी अपनी आजाद हिंद फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा पहुँचे। यहीं पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा, "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" दिया।

18 अगस्त 1945 को तोक्यो जाते समय ताइवान के पास नेताजी की मौत हवाई दुर्घटना में हो गई, लेकिन उनका शव नहीं मिल पाया। नेताजी की मौत के कारणों पर आज भी विवाद बना हुआ है। 

Hindi Journalism and Indian media magazine

दादी माँ के घरेलू नुस्खे

  • जानलेवा बीमारियों को मिटायें लहसुन की सिर्फ दो कलीयां । लहसुन खून में बढ़ी चर्बी कोलेस्ट्रोलको कम करने का काम करता है। उच्च रक्तचाप भी अनेक मारक रोगों का बढ़ा कारण माना जाता है। लहसुन का प्रयोग इन दोनों ही बीमारियों को जड़ से नष्ट करने की क्षमता रखता है। बस इसमें एक ही कमी हैं, वह है इसकी दुर्गंध। लेकिन इसमें कोलेस्ट्रोल को ठीक करने की गजब की क्षमता होती है।
    • Dadi maa ka desi nuskha: 
    रोज सबेरे बिना कुछ खाए- पीए दो पुष्ट कलियां छीलकर टुकड़े करके पानी के साथ चबाकर खा ले निगल जाए। 
    इस साधारण से प्रयोग को नित्य करते रहने से रक्त में बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रोल तो कम होगा ही, साथ ही उच्च रक्तचाप रोगियों का रोग भी नियंत्रित हो जाएगा। 
    शरीर में कही भी ट्युमर होने की संभावना दूर हो जाती है।
    • What is Garlic (लहसुन):
    जो कुछ भी हम रोजमर्रा के आहार में खाते-पीते हैं। उन सभी के अपने गुण-दोष होते हैं। रोटी, चावल, दाल, सब्जी, तथा उनमें डाले जाने वाले मसाले आदि सभी के कुछ न कुछ गुण हैं। अब जैसे लहसुन में एक नहीं अनगिनत गुण हैं। ऐसे ही लहसुन के एक गुणकारी प्रयोग की जानकारी उपर वर्णित है।
     
  • जोड़ो व घुटनों के दर्द से छुटकारा हमेशा के लिए। दादी माँ का घरेलु नुश्खा (Dadi Maa Ka Home Made Nuskha): 1. सवेरे मैथी दाना के बारीक चुर्ण की एक चम्मच की मात्रा से पानी के साथ फंक्की लगाने से घुटनों का दर्द समाप्त होता है। विशेषकर बुढ़ापे में घुटने नहीं दुखते।
    2. सवेरे भूखे पेट तीन चार अखरोट की गिरियां निकालकर कुछ दिन खाने मात्र से ही घुटनों का दर्द समाप्त हो जाता है।
    3. नारियल की गिरी अक्सर खाते रहने से घुटनों का दर्द होने की संभावना नहीं रहती।
    • जोड़ों के दर्द आस्टीयो-आर्थराईटीस पर शोध: 
    यदि आप जोड़ों के दर्द आस्टीयो-आर्थराईटीस से हैं, परेशान तो न घबराएं विशेषज्ञों की मानें तो आहार में कुछ परिवर्तन के साथ नियमित व्यायाम इस प्रकार के जोड़ों के दर्द को 50 प्रतिशत से अधिक कम कर सकता है। वेक फारेस्ट यूनिवर्सिटी के स्टीफन पी.मेसीयर  के एक शोध में यह जानकारी दी गयी है, जिसे हाल ही में अमेरिकन कालेज आफ रयूमेटोलोजी के सालाना वैज्ञानिक सत्र में प्रस्तुत किया गया है। 
    आस्टीयो-आर्थराईटीस में सामन्यतया घुटनों की उपास्थि नष्ट हो जाती है ,तथा वजन में बढ़ोत्तरी ,उम्र एवं चोट ,जोड़ों में तनाव एवं पारिवारिक इतिहास आदि कारण इसे बढाने का काम करते हैं। ऐसे रोगियों में नियंत्रित आहार से वजन कम करना जोड़ों के दर्द को कम करने का कारगर उपाय है। यह अध्धयन 154 ओवरवेट  लोगों में किया गया, जिनमें आस्टीयो-आर्थराईटीस के कारण घुटनों का दर्द बना हुआ था, इस शोध में लोगों को रेंडमली चुना गया, तथा उन्हें केवल आहार नियंत्रण एवं आहार नियंत्रण के साथ नियमित व्यायाम कराया गया और इन समूहों को एक कंट्रोल समूह से तुलना कर अध्ययन किया गया। इस अध्ययन से यह बात सामने आयी, कि आस्टीयो-आर्थराईटीस से पीडि़त रोगियों में वजन कम करना घुटनों के दर्द से राहत पाने का एक अच्छा विकल्प है।
     
  •  दादी माँ के सुझाव मुहांसों के लिए:
जिनको मुहांसे निकलते हों उन्हें अपने खाने में गर्म प्रकृति पदार्थ, तले हुए, तेज मिर्च मसाले वाले, खट्टे तीखे पदार्थों को शामिल नहीं करना चाहिए। 
भोजन करते समय कौर 32 बार चबाना चाहिए। 
दोनों वक्त, सुबह उठने के बाद और रात को सोने से पहले पेट साफ होना आवश्यक है। 
जिनका सुबह पेट साफ न होता हो वे शाम को सोने से पहले वैद्य पटनाकर काढ़ा, एक चम्मच थोड़े से पानी में मिला कर पी लिया। 
एक चम्मच से असर  हो तो दो चम्मच काढ़ा लिया करें।
काढ़े की मात्रा ज्यादा हो जाने पर सुबह दस्त पतला होगा। ऐसे में काढ़े की मात्रा कम कर लें।
तीन-चार दिन में काढ़े की मात्रा घटा और बढ़ाकर अपने अनुकूल मात्रा निश्चित कर लें।
अनुकूल मात्रा में ही इस काढ़े का सेवन करें। इस पूरे प्रयोग से एक दो माह में मुहांसे गायब हो जाएंगे।

  • सर्दी स्पेशल - ऐसा क्या खाएं की सालभर बीमारियां छू भी नहीं पाएं ।
सर्दियों में अपनी आयु और शारीरिक अवस्था को ध्यान में रख कर उचित और आवश्यक मात्रा में, पौष्टिक शक्तिवर्धक चीजों को लेना हमारे शरीर को सालभर के लिए एनर्जी देता है। आयु और शारीरिक अवस्था के मान से अलग-अलग पदार्थ सेवन करने योग्य होते हैं। लेकिन ठंड में पौष्टिक पदार्थों का सेवन शुरू करने से पहले पेट शुद्धि यानी कब्ज दूर करना आवश्यक है। 
क्योंकि इन्हें पचाने के लिए अच्छी पाचन शक्ति होना जरूरी है। वरना पौष्टिक पदार्थों या औषधियों का सेवन करने से लाभ ही नहीं होगा। ऐसी तैयारी करके, सुबह शौच जाने के नियम का पालन करते हुए, हर व्यक्ति को अपना पेट साफ रखना चाहिए। ठीक समय 32 बार चबा चबा कर भोजन करना चाहिए। आज हम पहले ऐसे पौष्टिक पदार्थों की जानकारी दे रहे हैं। जो किशोरवस्था से लेकर प्रोढ़ावस्था तक के स्त्री-पुरुष सर्दियों में सेवन कर अपने शरीर को पुष्ट, सुडौल, व बलवान बना सकते हैं।
सर्दियों के खास नुस्खे:
         - सोते समय एक गिलास मीठे कुनकुने गर्म दूध में एक चम्मच शुद्ध घी डालकर पीना चाहिए।
         -  दूध में मलाई और पिसी मिश्री मिलाकर पीना चाहिए।
         - एक बादाम पत्थर घिस कर दूध में मिला कर उसमें पीसी हुई मिश्री मिलाकर पीना चाहिए। 
         - सप्ताह में दो दिन अंजीर का दूध लें।
         - तालमखाना।
         - सफेद मुसली।
         - ठंडे दूध में एक केला और एक चम्मच शहद।
         - उड़द की दाल दूध पका कर बनाई हुई खीर।
         - प्याज का रस।
         - असगंध चूर्ण
         - उड़द की दाल। 
         - रोज सेवफल खाएं।
         - कच्चे नारियल की सफेद गरी। 
         -प्याज का रस दो चम्मच, शहद एक चम्मच, घी पाव चम्मच।

Sunday, December 23, 2012

अब्राहम लिंकन के अनमोल विचार

                             अब्राहम लिंकन के अनमोल विचार 

  1. किसी  वृक्ष  को  काटने  के  लिए  आप  मुझे  छ:  घंटे  दीजिये  और  मैं  पहले  चार  घंटे  कुल्हाड़ी  की  धार  तेज  करने  में  लगाऊंग। 
  2. साधारण  दिखने  वाले  लोग  ही  दुनिया  के  सबसे  अच्छे  लोग  होते  हैं : यही  वजह  है  कि  भगवान  ऐसे  बहुत  से  लोगों का निर्माण करते हैं।
  3. अगर  शांती  चाहते  हैं  तो  लोकप्रियता  से  बचिए।

Thursday, December 20, 2012

ज्ञान की बात


                                 जोश के साथ होश



    इंद्रियों के दास होकर नहीं, स्वामी होकर रहना चाहिए। संयम के बिना सुख एवं प्रसन्नता प्राप्त नहीं हो सकती। नित्य नए-नए भोगों के पीछे दौडऩे का परिणाम दु:ख और अशान्ति है।
श्रीमद्भगवद् गीता पढऩे, सुनने या समझने की सार्थकता इसी में है कि इंद्रियों के वेग तथा प्रवाह में बह जाना, मानव-धर्म नहीं है। किसी भी साधन-योग, तप, जप, ध्यान इत्यादि का प्रारंभ
संयम बिना नहीं होता।
संयम के बिना जीवन का विकास नहीं होता। जीवन के सितार पर हृदयलोक में मधुर संगीत उसी समय गूँजता है, जब उसके तार, नियम तथा संयम में बँधे होते हैं।
जिस घोड़े की लगाम सवार के हाथ में नहीं होती, उस पर सवारी करना खतरे से खाली नहीं है। संयम की बागडोर लगाकर ही घोड़ा निश्चित मार्ग पर चलाया जा सकता है। ठीक यही दशा मन रूपी अश्व की है। विवेक तथा संयम द्वारा इंद्रियों को अधीन करने पर ही जीवन-यात्रा आनंदपूर्वक चलती है।

                                  हम स्वयं अपने स्वामी बनें

तुम व्यर्थ में दूसरों के अनर्थकारी संदेशों को ग्रहण कर लेते हो। तुम वह सच मान बैठते हो, जो दूसरे कहते हैं। तुम स्वयं अपने आप को दु:खी करते हो कि दूसरे लोग हमें चैन नहीं लेने देते। तुम स्वयं ही दु:ख का कारण हो, स्वयं ही अपने शत्रु हो। जो किसी ने कुछ कह दिया, तुमने मान लिया। यही कारण है कि तुम उद्विग्न रहते हो।
सच्चा मनुष्य एक बार उत्तम संकल्प करने के लिए यह नहीं देखता कि लोग क्या कह रहे हैं। वह अपनी धुन का पक्का होता है। सुकरात के सामने जहर का प्याला रखा गया, पर उसकी राय को कोई न बदल सका। बंदा बैरागी को भेड़ों की खाल पहना कर काले मुँह गली-गली फिराया गया, किन्तु उसने दूसरों की राय न मानी।
दूसरे के इशारों पर नाचना, दूसरों के सहारे पर निर्भर रहना, दूसरों की झूठी टीका-टिप्पणी से उद्विग्न होना मानसिक दुर्बलता है। जब तक मनुष्य स्वयं अपना स्वामी नहीं बन जाता, तब तक उसका संपूर्ण विकास नहीं हो सकता। दूसरों का अनुकरण करने से मनुष्य अपनी मौलिकता से हाथ धो बैठता है।

स्वयं विचार करना सीखो। दूसरों के बहकावे में न आओ। कत्र्तव्य-पथ पर बढ़ते हुए, दूसरे क्या कहते हैं, इसकी चिंता न करो। यदि ऐसा करने का साहस तुम में नहीं है, तो जीवन भर दासत्व के बंधनों में जकड़े रहोगे।

 

                              अपनी इच्छाशक्ति को बढ़ाइए

जहाँ चाह वहाँ राह है’ यह एक पुरानी कहावत है, परंतु इसमें बड़ा बल है। मनुष्य की जैसी अच्छी-बुरी इच्छा होती है, वह उसी के अनुसार अपनी समस्त शक्तियों को लगा देता है और उसमें सफल होता है। मनुष्य की जैसी इच्छा होती है, वह वैसा ही बनता जाता है। कवि, लेखक, वक्ता, वकील, डॉक्टर, इंजीनियर आदि बनने की इच्छा रखने वाला, अपनी क्रियाओं को उसी दिशा में मोड़ देता है और अपनी सारी शक्तियों को एकाग्र करके उसमें लगा देता है, परिणामस्वरूप वह वही बन जाता है।
हमारा भविष्य हमारे अपने हाथों में है। उसको बनाने वाले हम स्वयं ही हैं। यही समय है, जब हमें अपने मार्ग का निश्चय कर लेना चाहिए, नहीं तो बाद में पछताना पड़ेगा। हम स्वयं अपने भविष्य को अंधकारमय बनाते हैं। इच्छाशक्ति  एक ऐसी वस्तु है, जो आसानी से हमारे स्वभाव में आ जाती है। इसलिए दृढ़ इच्छा करना सीखो और उस पर दृढ़ बने रहो। इस तरह से अपने अनिश्चित जीवन को निश्चित बना कर उन्नति का मार्ग प्रशस्त करो। मनुष्य को पिछड़ा हुआ और गिरी हुई परिस्थितियों में रखने वाली कोई वस्तु है, तो वह इच्छाशक्ति का अभाव है, जिसे हमें दूर करना है। यदि हमारी शक्तियाँ गुप्त पड़ी रहेंगी, तो हम दूसरों के लिए कुछ करने में कैसे समर्थ होंगे? पहले हमें अपनी इच्छाशक्ति बढ़ाना चाहिए, तभी हमें संतोष होगा कि यहाँ हम मुर्दो की तरह नहीं, बल्कि जिंदों की तरह जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
-LAAL MASHAL

                         
                   प्राचीन साहित्य में प्राण का वैज्ञानिक  विवेचन 

इसमें प्राण की परिभाषा,उसका स्वरुप,प्राण के अंग-स्थान व कार्य एवं प्राण का वैज्ञानिक विवेचन किया गया है।प्राण वह शक्ति है जिससे हमारे शरीर की सभी क्रियाओ का संचालन होता है। इसकी निर्बलता को  ही रोग कहते हैं।शरीर में अगर प्राणशक्ति प्रचुर मात्रा में रहती है तो शरीर पूर्ण स्वस्थ रहता है।इसलिए शास्त्रों ने इसे अमृत की संज्ञा दी है।


Wednesday, December 19, 2012

कथा

                                          एक पत्र  पिता द्वारा पुत्र को 
“मेरे प्यारे बच्चों,जिस दिन तुम्हें यह लगे कि मैं बूढ़ा हो गया हूं,
तुम खुद में थोड़ा धीरज लाना और मुझे समझने की कोशिश करना…जब खाना खाते समय मुझसे कुछ गिर जाए… जब मुझसे कपड़े सहेजते न बनें… तो थोड़ा सब्र करना,
मेरे बच्चों…और उन दिनों को याद करना जब मैंने तुम्हें यह सब सिखाने में न जाने कितना समय लगाया था.मैं कभी एक ही बात को कई बार दोहराने लगूं तो मुझे टोकना मत. मेरी बातें सुनना.

जब तुम बहुत छोटे थे तब हर रात मुझे एक ही कहानीबार-बार सुनाने के लिए कहते थे, और मैं ऐसा ही करता था जब तक तुम्हें नींद नहीं आ जाती थी.मैं तुम्हें ज़िंदगी भर कितनाकुछ सिखाता रहा…अच्छे से खाओ, ठीक से कपड़े पहनो, बेहतर इंसान बनो, हर मुश्किल का डटकर सामना करो… याद है न?बढ़ती उम्र के कारण यदि मेरी याददाश्त कमज़ोर हो जाए… या फिर बातचीत के दौरान मेरा ध्यान भटक जाए तो मुझे उस बात को याद करनेको मौका ज़रूर देना. मैं कभी कुछ भूल बैठूं तो झुंझलाना नहीं… गुस्सा मतहोना… क्योंकि उस समय तुम्हें अपने पास पाना और तुमसे बातें कर सकना मेरी सबसे बड़ी खुशी होगी… सबसे बड़ी पूंजी होगी.एक दिन ऐसा आएगा जब मैं चार कदम चलने से भी लाचार हो जाऊंगा…उस दिन तुम मुझे मजबूती से थामके वैसे ही सहारा दोगे न जैसे मैं तुम्हें चलना सिखाता था? एक दिन तुम यह जान जाओगे कि अपनी तमाम नाकामियों और गलतियों के बाद भी मैंने हमेशा तुम्हारा भले के लिए ही ईश्वर से प्रार्थना की.अपने प्रेम और धीरज का सहारा देकर मुझे ज़िंदगी के आखरी पड़ाव तक थामे रखना. तुम्हारी प्रेमपूर्ण मुस्कान ही मेरा संबल होगी.कभी न भूलना मेरे प्यारे बच्चों… कि मैंने तुमसे ही सबसे ज्यादा प्रेम किया.''तुम्हारा पिता”

''हिंदी जेन से साभार
                                                                    रूप बड़ा या गुण  

 एक राजा  को राज्य के राजस्व विभाग को देख रेख के लिए उपयुक्त व्यक्ति की तलाश थी।उन्होंने अपने महामंत्री से एक ऐसे योग्य व्यक्ति को ढूँढ़कर  लेन को कहा।कुछ दिनों बाद महामंत्री एक व्यक्ति को लेकर आए। राजा ने उसे पद तो प्रदान कर दिया,पर मंत्री से बोले-"ये आदमी योग्य तो है,पर दिखने में आकर्षक नहीं है।इसका रूप-रंग राजसी कार्यो के लिए उचित नहीं।"मंत्री यह सुनकर भी चुप रहे।
    कुछ दिनों बाद,एक दिन गर्मी के मौसम में राजा को प्यास लगी।मंत्री ने राजा के सेवक से कहा कि 'महाराज को सोने से गिलास में पानी दो।' पानी गरम था,राजा से घूंट भर भी न पिया गया।तब मंत्री सेवक से कहा कि 'अब महाराज के लिए सुराही का पानी लाओ।'सुराही का पानी पीते ही महाराज की प्यास भुझ गई।मंत्री का इशारा महाराज की समझ चूका था कि मनुष्य की योग्यता और पात्रता की पहचान उसके रूप-रंग से नहीं।वरन उसके आन्तरिक गुणों से होती है। 
- अखंड ज्योति 
                                   सच्चाई और छलना 

                दो बहने स्नान को गई।एक का नाम थे सच्चाई बाई।दूसरी थी छलना देवी।कपडे  सरोवर  के किनारे राखी और तैर-तैरकर नहाती रही।छलना बाहर निकली और उसने सच्चाई के कपडे पहन लिए।छलना देखें में कुरूप थी।बहन के परिधान पहनकर सुन्दर लगने लगी।वह चल दी,बिना यह प्रतीछा किये कि उसके कपड़ो के बिना सच्चाई कैसे आएगी।सच्चाई बाहर निकली।देखा छलना उसके कपडे पहनकर जा चुकी है। करती क्या? जो कपड़े सामने रखे थे,मैले-कुचैले वही पहनकर इज्जत बचाई और रोती घर लौट आई। छलना तो घर न जाकर कही और चली गई और फिर कभी नहीं आई। 
आज भी यही स्थिति है।छलना सुन्दर दिखती है।एवं ठीक सच्चाई जैसी दिखती है।लोगों को ठगती है,ठगती रहेगी - अखंड ज्योति

                                       ध्यान परमात्मा का  

अकबर आखेट पर था।नमाज की बेला आ गई।उसने जल्दी से वस्त्र बिछाया और नमाज पढना आरम्भ कर दिया।इतने में एक युवती अपने प्रियतम को ढूढती उधर आ निकली।उसका ध्यान तो दूसरी ओर था।कपडे पर पाँव रख वह आगे बढ़ गई।
अकबर चिल्लाया - "क्यों री !तुझे दिखा नहीं।मैं नमाज में लीन था,फिर भी तू आखें खोलकर चलने वाली,मेरे कपड़े पर पैर रखकर चली गई।"युवती ने जवाब दिया वह बड़ा मार्मिक है -"मैं तो अपने प्रियतम की खोज में मग्न थी,इसलिये मेरा ध्यान आपकी ओर नहीं गया।मगर आप तो भक्ति में मग्न थे,फिर आपने भला मुझे कैसे देख लिया!लगता है आपका ध्यान नमाज की ओर नहीं,मेरी ओर था।"

हम में से कितने जप करते है,अरदास करते है,नमाज पढ़ते हैं,पर क्या मन परमात्मा में लगाकर पढ़ते है।
सोचें ! -अखंड ज्योति 

                                                              स्वर्ग और नरक  

सेनापति  के बल-कौशल की चर्चा अक्सर होती थी।उससे उनका घमंड भी उसी अनुपात में बढ़ता रहा।एक दिन वे चीन के प्रसिद्ध दार्शनिक नानुशिगे के पास गए।जाते ही उनसे कहा - "हे संत मुझे स्वर्ग और नरक के बारे में बताएं? साथ में अपना परिचय भी बड़े गर्व के साथ दिया।"
सुनकर संत बोले - "शक्ल तो भिखारी जैसी है,किसने सेनापति बना दिया तुम्हें ? सुनते ही आप खो बैठा। तलवार खींच ली। नानुशिगे बोले -"अच्छा तो तुम्हारे पास तलवार भी है? क्या लोहे की है सचमुच ? धार भी चढ़ी भी है कि नहीं?क्या तुम्हारी कलाइयों में इतना दम है?"सेनापति आपा खो बैठा।हाथ काँपने लगे।लगा कि कभी भी वह तलवार चला ही देगा।
अब तक हँस रहे संत अब गंभीर हो गए। बोले -  "हे योद्धा !यही है नरक,जो अच्छे - अच्छों को दिखाई नहीं देता और वे उसकी लपेट में आ जाते हैं।" योद्धा शांत हो गया। तलवार म्यान में रखकर उसने विनम्र भाव से क्षमा माँगी एवं उनके चरणों में बैठ गया।
नानुशिगे बोले - "यही है विवेकशीलता का स्वर्ग। इसी में तुम्हें आत्मिक शांति मिलेगी।"
सेनापति एक पथ पढ़कर लौटा और फिर बदल गया। - -अखंड ज्योति

Tuesday, December 18, 2012

स्वामी विवेकानंद के कथन

  • वह नास्तिक है, जो अपने आप में विश्वास नहीं रखता - स्वामी विवेकानंद 
  • मन की दुर्बलता से अधिक भयंकर और कोई पाप नहीं है-स्वामी विवेकानंद
  • वस्तुएं बल से छीनी या धन से खरीदी जा सकती हैं, किंतु ज्ञान केवल अध्ययन से ही प्राप्त हो सकता है - स्वामी विवेकानंद
  •  मन का विकास करो और उसका संयम करो, उसके बाद जहाँ इच्छा हो, वहाँ इसका प्रयोग करो–उससे अति शीघ्र फल प्राप्ति होगी। यह है यथार्थ आत्मोन्नति का उपाय। एकाग्रता सीखो, और जिस ओर इच्छा हो, उसका प्रयोग करो। ऐसा करने पर तुम्हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा। जो समस्त को प्राप्त करता है, वह अंश को भी प्राप्त कर सकता है-स्वामी विवेकानंद
  • भाग्य बहादुर और कर्मठ व्यक्ति का ही साथ देता है। पीछे मुडकर मत देखो आगे, अपार शक्ति, अपरिमित उत्साह, अमित साहस और निस्सीम धैर्य की आवश्यकता है- और तभी महत कार्य निष्पन्न किये जा सकते हैं। हमें पूरे विश्व को उद्दीप्त करना है- स्वामी विवेकानंद
     

Followers